तो फिर इसक बाद तो रामजी ने सीता जी को एक धोबी के कहने मात्र से अपने घर से निकाल दिया, जबकि इससे पहले ही वो सीताजी की अग्नि परीक्षा लेकर उन्हे वापस लाये थे तो फिर इस बात का दुःख क्यों नहीं मनाया जाता है ये एक बहुत ही सोचने योग्य विचार है केवल खुशी ही क्यों दुख क्यों नहीं और फिर वैसे भी आज हमारे देश की दशा किसी से भी छिपी नही है रोज आये दिन हमारे देश के अखबार लूट,चोरी,रिश्वत खोरी बलात्कार आदि अनेको अपराधो से भरे रहते है और रही सही कसर भुखमरी और बेरोजगारी ने निकाल दी है एक तरफ जहाँ हमारे देश की गरीब और बेबस जनता भूखी सोती रहे और दूसरी तरफ हम ये त्यौहारो के नकली चोचलो में अपना धन और समय दोनों खराब करते रहे ये
कहाँ की समझदारी होगी, इन त्यौहारो में बर्बाद होने वाले इन पैसों को अगर हम इन गरीबो की मदद में खर्च करे तो ये असली खुशी होगी हमारे लिए, इस कर्म भूमि में आदमी का एक पल का भरोसा नहीं है और हम त्यौहार मनाने में लगे है इसकी बजाय हमें अपने मानव जीवन को सफल बनाने के बारे में सोचना चाहिए। 
 
   
   
  
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