परमात्मा कबीर साहेब जी कहते है की गुरुजी को भगवान मानकर ही भगवान पाया जा सकता है क्योकि गुरु जीव को भगवान प्राप्त करने की एक बीच की प्रमुख कड़ी का काम करते है और गुरुजी स्वयं परमात्मा का अंश होता है जोकि जीव की सभी बुराईयो और पापों को समाप्त कर भगवान पाने लायक बनाता है
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पूर्ण गुरु तीन बार में नाम दीक्षा देकर जीवो को पार करते है पहले प्रथम नाम दीक्षा देते है फिर कुछ समय के उपरांत जीव की द्रढता देखकर सतनाम देते है और फिर जीव की रुचि और समर्पित आस्था देखकर सार नाम और अंत में सार शब्द प्रदान कर जीव का जनम मरण का दीर्घ रोग को सदा सदा के लिए समाप्त करते है जोकि जीव को युगों युगों से लगा हुआ है।
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