गलत भक्ति जीव को नास्तिकता की ओर ले जाती है वर्तमान समय में साधक जो भक्ति कर रहा है उस पर आरूढ़ रहने के कारण उसे ही सत्य मानता है लेकिन जब वह फल प्राप्ति की इच्छा करता है तब उसे किसी प्रकार का कोई लाभ न मिलने के कारण वह दुखी व परेशान होकर नास्तिकता की अग्रसर होने लगता है
क्योकि वो भक्ति हमारे वेदो और शास्त्रो के अनुकूल ना
होने से कोई भी लाभ नही देती है और जीव का धीरे धीरे
भक्ति में विश्वास कम होने लगता है और फिर अंत में वो नास्तिक हो जाता है।
इसलिए हर मानव का प्रथम कर्तव्य है की वो हमारे वेदो और शास्त्रो के अनुकूल सतभक्ति करे जिससे वो मानव जीवन में भी सुखी हो और मरने के बाद भी मोक्ष को प्राप्त कर सके,किंतु सतभक्ति के लिए सतगुरु बनाना जरूरी है सतगुरु के मिलने के बाद ही सतभक्ति शुरू होती है और सतगुरु जी ही हमे सभी मर्यादाओ का पालन कर सतभक्ति करवाते है।
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